गयासुद्दीन बलबन का वास्तविक नाम बहाउदीन था जो जाति से इलबारी तुर्क था ।
- बचपन में ही मंगोलों ने उसे बगदाद के बाजार में बेच दिया था जहा से ख्वाजा जमालुद्दीन उसे 1232 ई. में दिल्ली ले आया यहाँ सुल्तान इल्तुतमिश ने इसे खरीद लिया ।
- यह चेहलगामी नामक दल में शामिल था और नासिरुद्दीन महमूद के शासनकाल में नायब-ए-ममलिकात नियुक्त किया गया ।
- सुल्तान पद पर बैठते ही चालीस गुलामों के दल को समाप्त कर दिया और अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए इल्तुमिश के परिवार के शेष लोगो को मरवा दिया
- इसने सैन्य विभाग ‘दीवान-ए-आरिज’ की स्थापना की और अपने विद्रोहियों को दबाने के लिए ‘लौह और रक्त’ की निति अपनाई ।
- बलबन ने मेवात के जंगलों को कटवा दिया
- बंगाल के सूबेदार तुगरिल खां ने 1276 ई. में विद्रोह किया जिसको इसने मरवा दिया
- बलबन के दरबार में प्रसिद्ध कवि अमीर खुसरो और समीर हसन रहते थे ।
- बलबन के अनुसार सुल्तान जिल्ले अल्लाह है यानि ईश्वर की परछाई है और खुद को ‘जिल्ला-इलाही’ घोषित किया ।
- बलबन ने सिजदा (घटनों के बल बैठ कर सुलतान के सामने सिर झुकाना) और पाबोस (पेट के बल लेट कर सुलतान के कदम चुमना) जैसी प्रथा अपने दरबार में प्रारभ की और साथ ही फारसी रीति-रिवाज पर आधारित ‘नवरोज’ उत्सव को प्रारंभ करवाया ।
- 1286 ई. में (मंगोलों से संघर्ष में अपने जेष्ट पुत्र के मारे जाने के शोक में) मृत्यु हो जाती है ।
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