- इसक मूल नाम ‘उलूग खां’ था मध्यकालीन सभी सुल्तानों में मुहम्मद तुगलक सबसे शिक्षित, विद्वान और योग्य था ।
- उसने अपने राज्य में मध्य राजधानी की स्थापना के साथ टोकन करेंसी (प्रतीक मुद्रा) का प्रयोग किया पर असफल रहा और अपनी सनक भरी योजनाओं के कारण इसे स्वप्रशील, पागल एवं रक्त पिपासु कहा गया है ।
- कार्य :
- दोआब क्षेत्र में कर वृद्धि (1326-1327 ई.): उसी वर्ष दोआब में भयंकर अकाल पड़ा गया जिससे पैदावार प्रभावित हुई और जबरन कर वसूलने से उस क्षेत्र में विद्रोह हो गया मुहम्मद तुगलक ने कृषि के विकास के लिए ‘अमीर-ए-कोही’ नाम विभाग की स्थापना की । पर सरकारी कर्मचारियों के भ्रष्टाचार, किसानों की उदासीनता आदि के कारण योजना को तीन वर्षों में ही बंद कर दिया इसने किसानों के लिए कम ब्याज पर ऋण उपलब्ध करवाया ।
- राजधानी परिवर्तन (1326-1327 ई.): तुगलक ने राजधानी दिल्ली से देवगिरि स्थानान्तरित किया देवगिरि को कुव्व्तुल इस्लाम कहा गया और इसका नाम दौलताबाद कर दिया इस परिवर्तन से दक्षिण में मुस्लिम संस्कृति का विकास हुआ और बहमनी साम्राज्य के उदय का मार्ग खुला ।
- सांकेतिक मुद्रा का प्रचलन (1329-1330 ई.): मुहम्मद तुगलक ने ‘दोकानी’ नामक सिक्के चलवाए इसमें पीतल और तांबा की धातुओं के सिक्के थे जिनकी कीमत चांदी के रूपये टका के बराबर होती थी पर बाजार में ऐसे जाली सिक्के आने से अर्थव्यवस्था ठप हो गई सांकेतिक मुद्रा चलाने की प्रेरणा चीन तथा ईरान से मिली थी
- खुरासन एवं काराचिल का अभियान :
- खुरासन को जीतने के लिए मुहम्मद तुगलक ने 3,70,000 सैनिकों को एक वर्ष का अग्रिम वेतन दे दिया पर राजनीतिक परिवर्तन के कारण दोनों में समझौता हो गया और आर्थिक हानि उठानी पड़ी ।
- कराचिल अभियान में सुल्तान ने खुसरों मलिक के नेतृत्व में एक विशाल सेना पहाड़ी राज्यों को जीतने के लिए भेजा पर पूरी सेना जंगली रास्तों में भटक गई और केवल दस ही बचकर आ सकें और यह भी असफल रही
- इसके शासन काल में अफ़्रीकी यात्री इब्नबतूता लगभग 1333 ई. में भारत आया और सुल्तान ने इसे दिल्ली का काजी नियुक्त किया 1342 ई में सुल्तान ने इसे अपने राजदूत के रूप में चीन भेज दिया ।
- इब्नबतूता की पुस्तक ‘रेहला’ में मुहम्मद तुगलक के समय की घटनाओं का वर्णन है इसमें विदेशी व्यापारियों के आवागमन, डाक व्यवस्था एवं गुप्तचर व्यवस्था के बार में लिखा है ।
- वह शेख अलाउद्दीन का शिष्य था और अजमेर में शेख मुइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह और बहराइच में सालार मसूद गाजी के मकबरे में गया
- इसने दिल्ली में शेख निजामुद्दीन औलिया, मुल्तान में शेख रुकनुद्दीन, बदायूँ में मीरन मुलहीम और अजुधन में शेख मुल्तान आदि संतों की कब्र पर मकबरे बनवाए ।
- इसकी मृत्यु 20 मार्च 1351 ई. को सिंध जाते समय थट्टा के निकट गोडाल पहुँचकर गभीर रूप से बीमार होने के कारण हो गई और इस पर इतिहासकार बरनी लिखता है लोगो को उससे मुक्ति मिली और उसे लोगों से ।
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