बहुत दिनों पहले एक राजा रहता था। उनकी दो रानियाँ थीं। दोनों रानियाँ नि:सन्तान थी। राजा सभी मन्दिरों में जा - जा कर पूजा-पाठ करते, घर में पूजा-पाठ करवाते। दो रानियाँ भगवान से विनती करते रहने पर फिर भी दोनों रानियाँ माँ नहीं बन पाई।
एक बार एक सन्यासी उस राज्य से गुजर रहे थे। राजा के दरबार में सभी लोग कहने लगे कि वे सन्यासी बहुत ही महात्मा है। क्यों न उन्हें राज दरबार में बुलाकर इस समस्या को हल करने के लिये विनती की जाये? राजा ने कहा कि सन्यासी को आदर से महल में बुलाया जाये।
वे महात्मा जब महल में पहुँचे, राजा ने दोनों रानियों को बुलाकर कहा "महात्मा का सत्कार बड़े आदर के साथ होना चाहिये।" बड़ी रानी उसी वक्त तैयार हो गई और महात्मा को बड़े आदर के साथ खिलाने लगी। छोटी रानी महात्मा के फटे कपड़ो की ओर देखती और उनकी सेवा करने से इन्कार कर देती है। छोटी रानी को अपने रुप और धन का बड़ा घमंड था।
कुछ दिनो बाद महात्मा जाने के लिए तैयार हो गये। जाने से पहले बड़ी रानी को उन्होंने खूब आशीर्वाद दिया और कहा "बहुत जल्द ही इस महल में बच्चों की आवाज़ सुनाई देगी" - बड़ी रानी तो बहुत खुश थी। और सचमुच कुछ ही दिनों के भीतर वह गर्भवती हो गई।
यह खबर राजा के पास पहुँचते ही राजा बहुत ही खुश हो गये। प्रजा तक उसी वक्त खबर पहुँच गई कि राजा अब पिता बनने वाले हैं। पूरे राज्य में लोग खुशियाँ मनाने लगे। बड़ी रानी का सम्मान बहुत बढ़ गया, और उनकी देखभाल करने के लिए और भी लोग रखे गये।
उधर छोटी रानी के मन में बहुत ज्यादा ईर्ष्या हो रही थी। रात दिन वह ईर्ष्या से जलने लगी थी। सोच रही थी कि अभी से जलने लगी थी। सोच रही थी कि अभी से बड़ी रानी का इतना आदर - न जाने बच्चे पैदा होने के बाद कितना ज्यादा आदर होगा, छटपटा रही थी छोटी रानी। उसने राजमहल की दाई को बुला भेजा और उसे ढेर सारा धन देकर अपने साथ शामिल कर लिया। और दोनों मिलकर इन्तज़ार करने लगे।
समय पर रानी ने दो बच्चों को जन्म दिया - एक बेटी, एक बेटा। दाई ने तुरन्त बच्चों को एक झाँपी में रखकर छोटी रानी के पास ले गई। और उसके बाद बड़ी रानी के पास दो पत्थर रख दिए।
बड़ी रानी ने जब पत्थरों को देखा उसे बहुत हैरानी हुई। ये कैसे हो सकता है। उधर राजा खुशी से झूमते हुये बड़ी रानी के पास पहुँचे और जब उन्होंने देखा बड़ी रानी दो पत्थरों को आश्चर्य से ताक रही है, राजा वहीं रुक गये और दाई से पूछने लगे क्या बात है। दाई ने कहा - "बच्चे नहीं, पत्थर निकले - राजा को बहुत गुस्सा आया। बड़ी रानी को उसी वक्त बंदी गृह में कैद कर दिया, पूरे राजमहल में ये बात फैल गई कि बड़ी रानी ने ईट पत्थर को जन्म दिया है।
उधर छोटी रानी अपने दो चौकिदारों को बुलाकर वह झाँपी दे दी और उनसे कहने लगी - "इस झाँपी में दो बच्चे हैं, दोनों को ले जाओ और मार डालो" - दोनों चौकिदार झाँपी लेकर जंगल में गये। झाँपी खोलकर बच्चों को जब देखा, तब दोनों ने निश्चय किया कि बच्चों को वही छोड़ देगें। भगवान बच्चों की रक्षा करेंगे। ये सोचकर वही झाँपी रखकर दोनों महल वापस आ गये। छोटी रानी ने जब पूछा - "हो गया काम"- उन्होंने कहा - "हाँ हो गया काम"।
इधर बड़ी रानी दिन रात पूजा पाठ में लग गई। राजा ने बड़ी रानी को फिर से महल में रहने दिया। बड़ी रानी सुबह से शाम तक पूजा करती रहती। पूजा करने के लिए फूल लाने सिपाही को भेजती। एक दिन आसपास कोई फूल नहीं मिले। सिपाही जंगल से फूल लाने गया। जंगल में सिपाही ने देखा बड़े सुन्दर चम्पा फूल लगे हुए थे। चम्पा और बाँस का झाड़ पास-पास उगे हुए थे। सिपाही फूल तोड़ने के लिए जैसे ही नज़दीक आया, चम्पा के झाड़ ने कहा "ए भैया बाँस".
बाँस झाड़ ने कहा "काय बहिनी चंपा?"
चंपा ने कहा - "राजा के सिपाही फूलवा तोड़े बर आए दे".
बाँस ने कहा - "लग जा बहिनी आकाश" - जैसे ही बाँस ने कहा, वैसे ही चम्पा का झाड़ उपर की ओर बढ़ने लगा, बढ़ते बढ़ते वह इतना बढ़ गया की सैनिक फूल तक नहीं पहुँच पाए। सैनिक आश्चर्यचकित होकर ताकते ही रहे। सैनिक दौड़ते हुए सेनापति के पास पहुँचे और उन्हें सारी बात बताई। सेनापति ने विश्वास ही नहीं किया - "ये सब क्या कह रहे हो?"
सैनिकों ने कहा - "आप एक बार हमारे साथ जंगल चलिये, एक बार खुद देख लीजिए".
सेनापति चल पड़े सैनिको के संग - जैसे ही सेनापति चम्पा और बाँस के पास पहुँचे, चम्पा ने कहा - "ए भैया बाँस" - बाँस ने कहा - "काय बहिनी चंपा?" चम्पा ने कहा - "राजा के सेनापति फूल तोड़े बर आए हे". बाँस ने कहा, "लग जा बहिनी आकाश"- चम्पा का झाड़ बढ़ते बढ़ते और भी ऊँचे तक पहुँच गया।
सेनापति बहुत ही डर गए। दौड़ते दौड़ते पहुँचे मन्त्री के पास - अब मन्त्री चल पड़े देखने के लिए। चम्पा को ऊपर से दूर तक दिखाई दे रहा था, उसने दूर से ही देख लिया कि मन्त्री जी आ रहे हैं।
"ए भैया बाँस" - बाँस ने कहा - "काय बहिनी चम्पा", चम्पा ने कहा - "राजा के मन्त्री फूल तोड़े बर आए हे" - "लग जा बहिनी आकाश"- मन्त्री जी जैसे ही पेड़ तक पहुँचे, पेड़ और ऊपर और भी ऊपर तक पहुँच गया। मन्त्री जी सीधे पहुँचे राजा के दरबार में। राजा ने कहा - "इतना घबरा क्यों गये हो?"
मन्त्री ने कहा - "आप इसी वक्त मेरे साथ चलिए राजा जी".
सारी बात सुनकर राजा ने कहा - "मेरी छोटी रानी भी मेरे साथ चलेगी। ये तो उन्हें भी देखना चाहिए।"
छोटी रानी को खबर देने वही दो सिपाही पहुँचे, जिन्होंने उन बच्चों को वहाँ फेंका था। दोनों खूब डर गये थे। छोटी रानी भी डर गई थी। वे जल्दी से तैयार होकर राजा के साथ चल पड़ी।
उधर बड़ी रानी फूल के लिए व्याकुल हो रही थी और सैनिकों को बुला भेजी थी ये जानने के लिए कि वे अब तक फूल क्यों नही लाये। बड़ी रानी, छोटी रानी के महल के पास से गुज़र रही थी, उन्हे छोटी रानी और दो सिपाहियों की बात सुनाई दी। राजा और छोटी रानी जब जाने लगे, उनकी सवारी के पीछे-पीछे बड़ी रानी पैदल ही चलने लगी - बहुत व्याकुल होकर वह चली जा रही थी।
चम्पा के झाड़ को ऊपर से सब कुछ दिखाई दे रहा था - जैसे ही वे सब पास पहुँचे
"ए भैया बाँस" - बाँस ने कहा - "काय बहिनी चम्पा", चम्पा ने कहा - "छोटी रानी संग राजा फूल तोड़े बर आए हे" - "लग जा बहिनी आकाश"- चम्पा का झाड़ और भी ऊँचा हो गया।
राजा दोनों पेड़ो के पास पहुँचकर पूछने लगे - "क्या बात है - तुम दोनों भाई बहिन हो - कैसे चम्पा और बाँस बन गए?" उसी वक्त बड़ी रानी वहाँ तक पहुँची। चम्पा ने जोर से कहा - "ए भैया बाँस" - बाँस ने कहा - "काय बहिनी चम्पा", चम्पा ने कहा - "हमर महतारी, दुखियारी बड़े रानी ह फुलवा तोड़े बर आवथे"- "परो बहिनी पाँव" - चम्पा ज़मीन में झुक गई और बड़ी रानी के पैरों के पास झूमने लगी। साथ-साथ बाँस का झाड़ भी झुक कर बड़ी रानी के पैरों को छूने लगा।
इसके बाद चम्पा और बाँस ने राजा को सारी बात बताई। राजा ने उसी वक्त छोटी रानी को बन्द करने को कह दिया अंधेरी कोठरी में और बड़ी रानी से माफी मांगने लगे।
बड़ी रानी बड़े दुख से चम्पा और बाँस को देख रहे थे। ये दोनों मनुष्य कैसे बनेंगे?
बड़ी रानी दोनों के करीब पहुँचकर दोनों से लिपटकर रोने लगी। जैसे ही उनके आँसूओं ने चम्पा और बाँस को छुआ, चम्पा और बाँस मनुष्य बन गये। बेटा, बेटी को बड़ी रानी ने गले से लगा लिया और जाकर रथ में बैठ गई। राजा रानी दोनों बच्चों के साथ राजमहल की ओर चल पड़े, साथ में बाजा, गाजा बजने लगे। पूरे देश में खुशियाँ फैल गई।
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