भारत में संवैधानिक विकास का इतिहास - History of India Constitution


किसी भी देश का
संविधान उसकी राजनीतिक व्यवस्था का वह बुनियादी सांचा-ढांचा निर्धारित करता है, जिसके अंतर्गत उसकी जनता शासित होती है। यह राज्य की विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका जैसे प्रमुख अंगों की स्थापना करता है और उसकी शक्तियों की व्याख्या करता है। इस प्रकार किसी देश के संविधान को उसकी ऐसी 'आधार' विधि कहा जा सकता है जो उसकी राज्यव्यवस्था के मूल सिद्धातों को निर्धारित करती है। प्रत्येक संविधान उसके संस्थापकों एवं निर्माताओं के आदर्शों, सपनों तथा मूल्यों का दर्पण होता है। वह जनता की सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक प्रकृति, आस्था एवं आकांक्षाओं पर आधारित होता है।


भारत में नये गणराज्य के संविधान का शुभारंभ 26 जनवरी, 1950 को हुआ और भारत अपने लंबे इतिहास में प्रथम बार एक आधुनिक ढांचे के साथ पूर्ण संसदीय लोकतंत्र बना। 26 नवम्बर, 1949 को भारतीय संविधान सभा द्वारा निर्मित ‘भारत का संविधान’ के पूर्व ब्रिटिश संसद द्वारा कई ऐसे अधिनियम/चार्टर पारित किये गये थे, जिन्हें भारतीय संविधान का आधार कहा जा सकता है।
कम्पनी राज :-

ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना 31 दिसम्बर 1600 ईस्वी में हुई थी। इसे ब्रिटेन की महारानी ने भारत के साथ व्यापार करने के लिये 21 सालो तक की छूट दे दी। बाद में कम्पनी ने भारत के लगभग सभी क्षेत्रों पर अपना सैनिक तथा प्रशासनिक अधिपत्य जमा लिया। 1858 में इसका विलय ब्रिटिश साम्राज्य में हो गया।

ब्रिटिश राज:-

ब्रिटिश साम्राज्य एक वैश्विक शक्ति था, जिसके अंतर्गत वे क्षेत्र थे जिनपर ग्रेट ब्रिटेन का अधिकार था।
1857 के विद्रोह के कारण भारत में कंपनी शासन समाप्त हो गया और भारत का शासन ब्रिटेन ने अपने अधीन ले लिया


1726 का राजलेख : इस राजलेख में कलकत्ता, बम्बई और मद्रास प्रेसिडेंसियों के गवर्नर और उनकी परिषद को विधि बनाने की शक्ति प्रदान की गई।


अगर आपको यह पसंद आया हो तो इसे अपने दोस्तों के साथ Share जरुर करे।

Post a Comment

और नया पुराने