1861 के अंतर्गत गैर-सरकारी सदस्य या तो बड़े जमींदार होते थे या अवकाश प्राप्त अधिकारी या भारत के राज परिवारों के सदस्य। प्रतिनिधित्व की आम आकांक्षा की पुष्टि इससे नहीं हुई। इसी बीच भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा अधिक प्रतिनिधित्व की मांग की जाती रही। यूरोपीय व्यापारियों की ओर से भी भारत सरकार को इंग्लैंड में स्थित इंडिया आफिस से अधिक स्वतंत्रता की मांग की जाती रही। सर जॉर्ज चिजनी की अध्यक्षता में एक कमेटी बनी जिसके सुझावों का समावेश 1892 के अधिनियम में किया गया। इस अधिनियम की प्रमुख बातें निम्न थीः
- इस अधिनियम के द्वारा केन्द्रीय तथा प्रांतीय विधान परिषद् में ‘अतिरिक्त सदस्यों’ की संख्या बढ़ा दी गयी और उनके निर्वाचन का भी विशेष उल्लेख किया गया। यद्यपि इसके द्वारा सीमित चुनाव की ही व्यवस्था हुई, लेकिन भारत के मुख्य सामाजिक वर्गों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया गया।
- परिषद के अधिकारों में भी वृद्धि की गयी। वार्षिक आय या बजट का ब्योरा परिषद में प्रस्तुत करना आवश्यक हो गया। सदस्यों को कार्यपालिका के काम के बारे में प्रश्न पूछने का अधिकार दिया गया।
एक टिप्पणी भेजें