1892 का अधिनियम राष्ट्रवादियों को संतुष्ट नहीं कर सका था, साथ ही राष्ट्रीय आंदोलन पर उग्रवादी नेताओं का प्रभाव बढ़ता जा रहा था। सेक्रेटरी ऑफ स्टेट लॉर्ड मार्ले तथा भारत में वायसराय लॉर्ड मिन्टो दोनों ही सहमत थे कि कुछ सुधारों की आवश्यकता है। सर अरुण्डेल कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर फरवरी 1909 ई. में नया अधिनियम पारित किया गया जिसे भारतीय परिषद् अधिनियम 1909 और ‘मार्ले-मिन्टो सुधार’ के नाम से जाना गया। इस अधिनियम के प्रमुख प्रावधान निम्न थेः
- इस अधिनियम के द्वारा केन्द्रीय एवं प्रांतीय विधान परिषदों में निर्वाचित सदस्यों की संख्या में वृद्धि की गयी। प्रांतीय विधान परिषदों में गैर-सरकारी बहुमत स्थापित किया गया।
- सभी निर्वाचित सदस्य अप्रत्यक्ष रूप से चुने जाते थे। स्थानीय निकायों से निर्वाचन परिषद का गठन होता था। ये प्रांतीय विधान परिषदों के सदस्यों का चुनाव करती थी। प्रांतीय विधान परिषद के सदस्य केन्द्रीय व्यवस्थापिका के सदस्यों का चुनाव करते थे।
- पहली बार अलग निर्वाचन व्यवस्था का प्रारंभ किया गया। मुसलमानों को प्रतिनिधित्व में विशेष रियायत दी गयी। उन्हें केन्द्रीय एवं प्रांतीय विधान परिषदों में जनसंख्या के अनुपात से अधिक प्रतिनिधि भेजने का अधिकार दिया गया।
- गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी में एक भारतीय सदस्य को नियुक्त करने की व्यवस्था की गयी। प्रथम भारतीय सदस्य के रूप में सत्येन्द्र सिन्हा की नियुक्ति हुई।
- विधायिका के कार्यक्षेत्र में विस्तार किया गया। सदस्यों को बजट प्रस्ताव करने और जनहित के विषयों पर प्रश्न पूछने का अधिकार दिया गया। जिन विषयों को विधायिका के क्षेत्र से बाहर रखा गया था, वे थे सशस्त्र सेना, विदेश संबंध और देशी रियासतें।
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