भारत सरकार अधिनियम, 1935 (Government of India Act, 1935)


1935 के भारत सरकार अधिनियम में 321 अनुच्छेद तथा 10 अनुसूचियां थीं। इस अधिनियम के प्रमुख प्रावधान निम्न थेः
      • इस अधिनियम द्वारा अखिल भारतीय संघ का प्रावधान किया गया, जिसमें ब्रिटिश प्रांतों का शामिल होना अनिवार्य था, किन्तु देशी रियासतों का शामिल होना नरेशों की इच्छा पर निर्भर था।

      • संघ तथा केन्द्र के बीच शक्तियों का विभाजन किया गया। विभिन्न विषयों की तीन सूचियां बनायी गयी- संघीय सूची, प्रांतीय सूची तथा समवर्ती सूची।

      • 1919 के अधिनियम द्वारा जो द्वैध शासन प्रांतों में लागू किया गया था, उसे केन्द्र में लागू किया गया। केन्द्रीय सरकार के विषयों को दो भागों में विभाजित किया गया- संरक्षित विषय और हस्तांतरित विषय। संरक्षित विषय गवर्नर जनरल के अधिकार क्षेत्र में था, जबकि हस्तांतरित विषयों का शासन मंत्रिपरिषद को सौंपा गया।

      • केन्द्र में द्विसदनात्मक विधायिका की स्थापना की गयी- राज्य परिषद (उच्च सदन) तथा केन्द्रीय विधान सभा (निम्न सदन)।

      • प्रांतों में द्वैध शासन को समाप्त कर प्रांतीय स्वायत्तता के सिद्धान्त को स्वीकार किया गया।

      • प्रांतीय विधायिका को प्रांतीय सूची तथा समवर्ती सूची पर कानून बनाने का अधिकार दिया गया।

      • प्रांतीय विधान मंडल को अनेक शक्तियां दी गयी। मंत्रिपरिषद को विधानमंडल के प्रति जिम्मेदार बना दिया गया और वह एक अविश्वास प्रस्ताव पारित कर उसे पदच्युत कर सकता था। विधान मंडल प्रश्नों तथा अनुपूरक प्रश्नों के माध्यम से प्रशासन पर कुछ नियंत्रण रख सकता था।

      • इस अधिनियम के अधीन बर्मा को भारत से अलग कर दिया गया और उड़ीसा तथा सिन्ध नाम से दो नये प्रांत बना दिये गये।

      • इस अधिनियम द्वारा एक संघीय बैंक और एक संघीय न्यायालय की स्थापना का भी प्रावधान किया गया।


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